Adhoori Saansen (Hindi Edition): A Heartbreaking Story - Kindle Book

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यह कहानी बताती है कि सती प्रथा जैसी कुरीतियाँ आस्था के नाम पर निर्मम हत्या थीं, जिन्हें समाज ने सम्मान का आवरण पहनाकर ढक दिया।

मुख्य पात्र:
गंगा – सोलह बरस की मासूम लड़की, भोली, जिज्ञासु और जीवन से भरी।
गंगा की माँ (सरस्वती) – संवेदनशील, पर सामाजिक दबाव से टूटी हुई।
गंगा का पिता (रामप्रसाद) – गरीब किसान, जातिगत प्रतिष्ठा और समाज के डर में दबा हुआ।
पति (रघुनाथ सिंह) – उम्र में बहुत बड़ा, बीमार और कठोर स्वभाव का ठाकुर।
गाँव के लोग – अंधविश्वास में डूबे, ढोंग और परंपरा के नाम पर निर्दयी।
पुजारी (शिवनारायण) – लालची और आडंबरप्रिय, जो सती को “धर्म” बताता है।

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गाँव की सीमा पर आम का पुराना बाग था, जहाँ आज भीड़ लगी थी। बूढ़े ठाकुर रघुनाथ सिंह की मृत्यु हो गई थी। उनके घर की चौखट पर लोग मातम से ज्यादा जिज्ञासा लेकर खड़े थे—"देखें, बहू सती होगी या नहीं!"

वह बहू—सोलह बरस की गंगा। नाजुक उम्र, मासूम चेहरा। अभी दो बरस भी न हुए थे ब्याह को। वह जानती भी न थी कि पति की जगह कौन-सी चारपाई पर सोती थी—और अब वही उसका “स्वर्ग” बनने वाला था।

घर की औरतें गंगा को घेरे हुए थीं। कोई समझा रहा था—
"बेटी, सती होने से कुल का नाम रोशन होगा।"
कोई धमका रहा था—
"इंकार करोगी तो बदनामी सदा तुम्हारे माथे पर रहेगी।"

गंगा की माँ भीड़ में खड़ी रो रही थी, मगर उसकी आवाज़ भीड़ में दब गई। पिता मुँह फेरकर खड़े थे—सम्मान और डर के बीच पिसते हुए।

शाम होते-होते चिता सज गई। लोग कह रहे थे—"क्या भाग्य है ठाकुर का! मरते ही पतिव्रता पत्नी संग स्वर्ग जायेंगे।"

गंगा काँपते हुए चिता के पास लाई गई। ढोल-नगाड़ों की आवाज़ से उसका भय दबाया जा रहा था। पुजारी ने मंत्र पढ़ना शुरू किया। किसी ने उसके हाथ में दीपक थमाया, किसी ने सिर पर हल्दी-चावल छिड़के।

गंगा ने एक बार चारों ओर देखा। माँ की आँखों में लाचारी, पिता की आँखों में भय, और गाँव वालों की आँखों में अंधी श्रद्धा। उसे लगा—"मैं जीऊँ तो अपमान, मरूँ तो महिमा।"

उसने धीरे से पूछा—"क्या सच में सती होकर मैं देवियाँ बन जाऊँगी?"
भीड़ से आवाज़ आई—"हाँ बेटी, अमर हो जाओगी!"

गंगा ने आँखें बंद कीं, और चिता पर बैठ गई। आग सुलगाई गई। लपटें उठीं, गंगा चीख उठी—"माँ... बचा लो!" लेकिन उस आवाज़ को ढोल-नगाड़ों ने डुबो दिया।

भीड़ ने हाथ जोड़ लिए—"सती माता की जय!"

सुबह चिता की राख में सिर्फ कुछ अधजली चूड़ियाँ पड़ी थीं।

गाँव के बच्चों ने वही राख उठाकर खेलना शुरू कर दिया।
और किसी ने यह नहीं सोचा कि एक मासूम लड़की देवत्व नहीं—बलि बन गई थी।

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